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Dalu Damor

अपना बीज , अपना राज

दलू डामोर की कहानी, कई किसानो के लिए पेरणा का सोत है। उने अगर सही मार्गदर्शन मिले, और वे स्वयं अपने परिवार के कौशल का संगट्टित होकर समुिचत उपयोग करे तो देश के कई छोटे किसान क़र्ज़ और गरीबी से मुक्त हो सकते है।
A story interviewed and written by Rakesh Garasiya from Vaagdhara, Rajasthan

Amli pada village, Banswara dist., Rajasthan

संगठन में शक्ती है ये कहावत तो हम सबने ने कई बार सुनी होगी लेकिन इसे हकीकत कर दिखाया बाँसवाड़ा ज़िले के आमलीपडा गांव के रहने वाले 56 वर्षीय किसान दलु डामोर ओर उनके परिवार ने। उनके परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटे और एक बेटी है। 5 बीघा जमीन पर खेती करने वाले दलु डामोर के पास, दो बेल, एक भेस, एक गाय ,दो बकरी है।

जैसा की देश के लगभग हर किसान के वर्तमान हालात है,  कई वर्षो से खेती करने  के बावजूद उनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर होती जा रही थी। जिसके फलस्वरूप उन्होंने परम्परागत खेती को छोड़ कर  बाजार आधारित खेती करनी शुरू कर दी थी। कई वर्षों तक उनके द्वारा अपने  खेत मे हर साल  खरीफ में – मक्का ,धान ,ओर  रबी में – चने की फसल ली जाती थी।  दलु डामोर खेत मे हल चलाने का  काम करते थे, वहीं  उनकी पत्नी घर के कार्यो के साथ साथ पशुओं  की देखभाल का काम  करती थी।  निराई गुड़ाई सही नही हो पाने के कारण हर साल फसल में खरपतवार बढ़ जाते थे  जिससे उपज कम होती थी। उपज कम होने से कई बार उनके परिवार के लिए भी अनाज  पर्याप्त नही हो पता था। इसके  कारण उन्हें कई बार साहूकार से उधार लाकर अपने लिए अनाज का इंतेजाम करना  पड़ता था।

एक  साल बारिश  बहुत कम हुई। इसके कारण उत्पादन भी बहुत कम हुआ, बाजार से लाए गए  बीज  रासायनिक दवाई ओर खाद के उपयोग का  कर्ज तो बेहद  बढ़ गया । इसी के साथ रासायनिक खाद के द्वारा उपजाए गए अनाज के उपयोग से परिवार में पोषण की कमी और बीमारियां बढ़ने लगी, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति और भी कमजोर होती जा रही थी। अब दलु डामोर के मन मे खेती से विश्वास उठने लगा था।

इसी दौरान उनकी मुलाकात वाग्धारा संस्था के सहजकर्ता कलसिंग डमोर से हुई। सहजकर्ता के द्वारा उनको बताया गया कि संस्था के द्वारा निर्मित किसान समूह में  परंपरागत बीज , सब्जी वाड़ी , फलदार पौधे लगाने ,देशी दवाओं ओर जैविक खाद  के उपयोग  ओर पशुपालन करने के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। सहजकर्ता से प्राप्त जानकारी से उनका एक बार फिर से खेती के प्रति विश्वास जागने लगा। वे भी इस किसान समूह का सदस्य बन कर नियमित बेठको  में जाने लगे। इन बैठकों में उन्होने देशी बीज  ,कम्पोस्ट  खाद , दस पर्णी , जीवामृत , मठास  , निम आधारित दवाओं के  उपयोग के बारे में जाना, और इसी से प्रेरणा लेकर उन्होने  हल के द्वारा खेत की जुताई के साथ खेत मे सब्जी वाड़ी ओर फलदार पौधे लगाना शुरू कर दिया। रासायनिक दवाओं का पहले प्रयोग करने के कारण भूमि की उर्वरकता शक्ति कमजोर हो चुकी थी जिसके कारण उन्हें पहले साल  फसल  से कोई मुनाफा नही हुआ पर उनके घर के लिए पर्याप्त मात्रा खाद्यान की उपलब्धता में हो गई थी क्योंकि बाजार में  बीज, दवाई ओर खाद का पैसा नही देना पड़ा था।

अगले वर्ष दलु डामोर ने परिवार के साथ मिलकर सब को अलग अलग  कार्यों  की जिम्मेदारी दे दी। वह खुद जैविक दवाई – दस पर्णी , जीवामृत , निम अधारित ओर   कम्पोस्ट खाद , वर्मी कम्पोस्ट आदि के  बारे में सहजकर्ता के द्वारा किसान समूह में  दिये गए प्रशिक्षण में भाग लेकर सीखते गए और घर पर  आकर अपने परिवार के सदस्यों को भी इसका प्रशिक्षण देने लगे।  इन जैविक दवाइयों एवं कम्पो

स्ट के नियमित प्रयोग से  एक तरफ उन्होंने धीरे धीरे अपनी सब्जी वाड़ी में- बैगन , टमाटर , भिंडी , लोकी , कदू , गिलकी , तुरई  वालर , रजन , धिमडी ,मिर्च , धनिया , हल्दी जैसी विविध सब्जियाँ एवं मसालो का उत्पादन किया, वहीं दूसरी तरफ उन्होने अपने खेत में  खरीफ की फसल में  -मक्का ,  धान  कुरी ,कांगनी ओर  तुवर , उड़द , चवला, और रबी में  – गेहू , चना,  मसूर  की खेती करते गए।  फसल चक्र को समझते हुए उसका सही उपयोग करने से अब उन्हें फसल खराबे की चिंता नही रहती थी। घर के बीज के उपयोग करने से साहूकार को भी पैसे नही देने पड़ते थे। जो अनाज उत्पन्न हो जाता था उसमे से घर खाने के लिए ओर बीज के लिए  अलग रख देने के बाद बची हुई उपज को बाजार में बेचने से अब उन्हे आमदनी भी होने लगी है।

वर्तमान में उनकी पत्नी तारा देवी  सब्जी वाड़ी की देख रेख करते हुए  सब्जी बेच कर हर  महीने के 6000रुपये कमा लेती  है। बड़ा बेटा हल द्वारा जुताई करता था और छोटा बेटा ओर बेटी  पशुओं की देखभाल करने के बाद  खेत मे निराई गुड़ाई करते थे  जिसके कारण  उन्हे अब मजदूरी के पैसे नही देने पड़ते है।

कर्ज़ की के जीवन से निकालकर आज  घर और पारिवारिक खर्च निकालकर  उनके परिवार में  साल भर के  140000 रुपये  बचत हो जाती है। घर की सब्जी और अनाज के उपयोग से  बीमारियां कम होने लगी परिवार के सभी सदस्यों का सहयोग मिलने के कारण आमदनी बढ़ने लगी ओर उनके परिवार को पोष्टिक भोजन  मिलने लगा जिससे दलु के परिवार की  आर्थिक स्थिति धीरे धीरे  मजबूत हो गई।

दलू डामोर की कहानी, कई किसानो के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। उन्हें अगर सही मार्गदर्शन मिले, और वे स्वयं एवं अपने परिवार के कौशल का संगठित होकर समुचित उपयोग करे तो देश के कई छोटे किसान कर्ज़ और गरीबी से मुक्त हो सकते है।